जयपुर: प्रदेश में नवजात शिशुओं को विशेष उपचार सुविधायें प्रदान करने व नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिये जिलास्तरीय विशिष्ट कार्ययोजना बनाकर प्रभावी क्रियान्विति सुनिश्चित की जायेंगी। प्रत्येक जिले में उपलब्ध संसाधनों एवं सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुये विशेष कार्ययोजना बनाकर लागू की जायेगी।
प्रमुख शासन सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य वीनू गुप्ता ने शुक्रवार को स्थानीय होटल वेस्टा में नवजात मृत्यु दर में कमी लाने हेतु कार्ययोजना विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुये यह जानकारी दी। कार्यशाला में नवजात मृत्यु दर की दृष्टि से उच्च प्राथमिकता वाले उदयपुर, धौलपुर, करौली, जालोर, बाड़मेर, राजसमंद, सिरोही एवं सवाईमाधोपुर जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य अधिकारी, प्रमुख चिकित्सा अधिकारी, जिला कार्यक्रम प्रबंधक, जिला आशा समन्वयक एवं जिला आईईसी समन्वयकों ने भाग लिया।
गुप्ता ने मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं के प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये जिलास्तर से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र व उपकेन्द्रों में कार्यरत चिकित्साकार्मिकों में आपसी समन्वय के साथ उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। उन्होंने सभी चिकित्साकर्मियों एवं प्रबंधकीय कार्मिकों से टीम वर्क के रूप में कार्य कर प्रत्येक लाभार्थी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवायें सुलभ कराने पर बल दिया।
गुप्ता ने बताया कि एसआरएस- वर्ष 2014 के अनुसार प्रदेश में नवजात मृत्यु दर प्रति हजार जीवित जन्म पर 32 थी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2030 के निर्धारित ग्लोबल लक्ष्य 12 प्रति हजार प्राप्त करने हेतु नवजात देखभाल ईकाईयों, प्रसव कक्षों में व्यवस्थायें, रैफरल सेवायें, चिकित्साकार्मिकों की उपलब्धता, इंफ्रास्ट्रक्टर सहित विभिन्न जिला आधारित बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुये कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी।
शासन सचिव एवं मिशन निदेशक एनएचएम नवीन जैन ने जिलों में नवजात शिशुओं को स्वास्थ्य देखभाल के स्थापित विभिन्न ईकाईयों के प्रभारी, पीएमओ, सीएमएचओ, आरसीएचओ एवं फील्ड स्तर पर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों को आपसी सामन्जस्य स्थापित करते हुये पेशेंट सेंटर्ड (रोगी आधारित) होकर कार्य करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। उन्होंने जिला स्तर पर नियमित रूप से समीक्षा बैठकें कर समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने एक फिल्म के माध्य से सभी प्रतिभागियों से प्रोएक्टिव होकर कार्य करने का आव्हान किया।
यूनिसेफ के डा. अनिल अग्रवाल ने फेसिलिटी बेस्ड नवजात देखभाल ईकाईयों के सुदृढीकरण विषय पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इन प्राथमिकता वाले आठ जिलों में 556 एनबीसीसी, 46 एनबीएसयू एवं 13 एसएनसीयू स्थापित हैं। उन्होंने नियमित रूप से स्वास्थ्य सूचकांकों व क्लिनिकल प्रोटोकाल्स की समीक्षा, सहयोगात्मक पर्यवेक्षण एवं पीएमओ, शिशु रोग विशेषज्ञ एवं प्रसूति कक्ष प्रभारी तीनों आपसी चर्चा की उपयोगिता पर चर्चा की।
निपी के डा. एस.पी. यादव ने समुदाय आधारित नवजात देखभाल के लिये संचालित घर आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम, एसएनसीयू से उपचारित शिशु का एएनएम व आशा सहयोगिनी द्वारा नियमित अंतराल में फोलोअप, परिवार केन्दि्रत देखभाल कार्यक्रम एवं नवजात मृत्यु समीक्षा पर विस्तार से प्रकाश डाला। यूनिसेफ की डा. अपूर्वा चतुर्वेदी ने प्रसूति कक्ष नियमावली एवं गुणवत्तापूर्ण प्रसव सेवायें उपलब्ध कराने पर प्रतिभागियों को जानकारी दी। बीसीजी के श्री रोहित साहनी ने लाभार्थियों एवं उनको दी गयी सेवाओं का डाटा कलेक्शन, प्रमाणीकरण करने के साथ ही उनके विश्लेषण पर विस्तार से चर्चा की।
परियोजना निदेशक मातृ स्वास्थ्य डा. तरुण चौधरी ने प्रसूताओं एवं शिशुओं के लिये उपलब्ध रैफरल सुविधाओं, वर्तमान स्थिति एवं गैप्स पर प्रजेंटेशन के माध्यम से प्रतिभागियों को विस्तार से जानकारी दी। जापाईगो के डा. कैलाश सारन ने सहयोगात्मक पर्यवेक्षण विषय पर अपने विचार व्यक्त किये।
भोजनकाल के बाद तीसरे सत्र में जिलों से आये संभागियों को आठ समूहों में जिला विशिष्ट कार्ययोजना बनाने के लिये अलग-अलग थीम दी। इस समूह कार्य में फेसिलिटी बेस्ड नवजात देखभाल ईकाईयों के सुदृढीकरण, समुदाय आधारित नवजात देखभाल, गुणवत्तापूर्ण प्रसव सेवाओं, डेटा ट्रेकिंग, वर्तमान स्थिति व गैप्स, प्रसूताओं एवं शिशुओं के लिये उपलब्ध रैफरल सुविधाओं, वर्तमान स्थिति एवं गैप्स, सहयोगात्मक पर्यवेक्षण, एचआर प्रबंधन एवं हैल्थ सीकिंग बिहेवियर थीम पर कार्ययोजना बनायी गयी।
कार्यशाला में प्रबंध निदेशक आरएमएससीएल ओमप्रकाश कसेरा, निदेशक जनस्वास्थ्य डा. वी.के माथुर, परियोजना निदेशक टीकाकरण डा. एस.के. गर्ग सहित संबंधित अधिकारीगण मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन परियोजना निदेशक शिशु स्वास्थ्य डा. रोमेल सिंह ने किया।
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