सरकार के प्रयासों से आयुर्वेद जगत पा रहा नए आयाम - उच्च शिक्षा मंत्री




जयपुर: उच्च शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी ने कहा है कि राज्य सरकार द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार और सम्बलन के लिए भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। आयुर्वेद जगत आज एक नए और सुनहरे दौर में प्रवेश कर रहा है। 

उच्च शिक्षा मंत्री माहेश्वरी ने रविवार को राजसमन्द में जिला आयुर्वेद कार्यालय सभागार में राजस्थान आयुर्वेद विभागीय चिकित्सक संघ एवं आयुर्वेद विभाग की ओर से स्वस्थ जीवन शैली अभियान विषय पर आयोजित वैज्ञानिक संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए यह बात कही। संगोष्ठी में आयुर्वेद चिकित्सक, विशेषज्ञ एवं विभागीय अधिकारी मौजूद थे।

उच्च शिक्षा मंत्री माहेश्वरी ने आयुर्वेद चिकित्सा से संबंधित प्रचार पोस्टर का भी विमोचन किया। लोक चिकित्सा पद्धति के रूप में पहचान दिलाएं

अपने उद्बोधन में उच्च शिक्षा मंत्री ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को कारगर, निरापद एवं सर्वसुलभ बताया और इसके व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इस पद्धति को जन-जन तक पहुंचाने के लिए नवाचारों और आधुनिक माध्यमों का प्रयोग जरूरी है। उन्होंने कहा कि कम खर्च वाली इलाज की इन पुरातन पद्धतियों से  सम्पूर्ण स्वास्थ्य पाया जा सकता है।

माहेश्वरी ने सरकारी अधिकारियों एवं कार्मिकों को कार्यक्षमता में अभिवृद्धि तथा तनाव, अवसाद एवं बोझिल मनोवृत्ति पर अंकुश पाने के लिए योग-आयुर्वेद अपनाने को कहा, ताकि वे जनता को प्रसन्नता के साथ अधिक से अधिक सेवाएं दे सकें।


जन प्रतिनिधियों की योग-आयुर्वेद कार्यशाला हो

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि ग्रामीण एवं शहरी जन प्रतिनिधियों के लिए नियमित स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवनशैली की बुनियाद मजबूत करने के लिए योग व आयुर्वेद कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए।

आयुर्वेद प्रशिक्षण केन्द्र जरूरी

उन्होंने राजसमन्द में राजस्थान के पहले आयुर्वेद प्रशिक्षण केन्द्र की जरूरत पर अपनी सहमति जताते हुए विभागीय अधिकारियों से इसका प्रस्ताव तैयार करने को कहा।  

किरण माहेश्वरी ने आगामी 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन को अपूर्व सफल बनाने का आह्वान किया।  


संगोष्ठी में जिला कलक्टर पी.सी. बेरवाल, राजसमन्द नगर परिषद के सभापति सुरेश पालीवाल, आयुर्वेद विभाग के संभागीय उप निदेशक डॉ. अशोक बाबू शर्मा,  जिला आयुर्वेद अधिकारी डॉ. शान्तिलाल सोनी, डॉ. रामानन्द दाधीच आदि ने भी अपना संबोधन दिया।

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