प्रधानमंत्री मोदी की चादर पर भारी पड़ा धौलपुर उपचुनाव ?
जयपुर देवेन्द्र सिंह विश्व प्रसिद्द सूफी संत ख्वाजा मोईनू्द्दीन हसन चिश्ती के सालाना 805वें उर्स मुबारक मौके पर पहली बार देश के वजीरे आला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से पेश की गई चादर के दौरान भाजपाईयों की गैरमौजूदगी, आमजन में चर्चा का विषय बन गई है। इसे लेकर राजनैतिक गलियारो में सुगबुगाहट शुरु हो गई है।
शनिवार को केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी पीएम नरेन्द्र मोदी की चादर लेकर दिल्ली से अजमेर शरीफ पहुंचे और ख्वाजा साहब की मजार पर मखमली चादर पेश की, लेकिन इस दौरान प्रदेश का ना तो कोई आला नेता मौजूद था और ना ही स्थानीय सांसद व विधायकों ने आना जरुरी समझा।
यह पहला मौका है कि प्रधानमंत्री की ओर से पेश की गई उर्स के मौके पर पेश की गई चादर के साथ मुख्यमंत्री मौजूद नही रहे। प्रदेश ही नही दिल्ली के राजनितिक गलियारो में इस बात की चर्चा रही कि आखिर क्या कारण रहे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से चादर पेशगी के मौके पर प्रदेश स्तर का कोई मंत्री,सांसद,विधायक या प्रदेश स्तरीय पदाधिकारी मौजूद नही थें।
जयपुर देवेन्द्र सिंह विश्व प्रसिद्द सूफी संत ख्वाजा मोईनू्द्दीन हसन चिश्ती के सालाना 805वें उर्स मुबारक मौके पर पहली बार देश के वजीरे आला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से पेश की गई चादर के दौरान भाजपाईयों की गैरमौजूदगी, आमजन में चर्चा का विषय बन गई है। इसे लेकर राजनैतिक गलियारो में सुगबुगाहट शुरु हो गई है।
शनिवार को केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी पीएम नरेन्द्र मोदी की चादर लेकर दिल्ली से अजमेर शरीफ पहुंचे और ख्वाजा साहब की मजार पर मखमली चादर पेश की, लेकिन इस दौरान प्रदेश का ना तो कोई आला नेता मौजूद था और ना ही स्थानीय सांसद व विधायकों ने आना जरुरी समझा।
इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर है कि अब तक जब भी प्रधानमंत्री की ओर से ख्वाजा साहब की मजार पर चादर चढ़ाई जाती रही है ज्यादातर मौको पर प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व की उपस्थिती रही है। लेकिन इस बार अजमेर जिले के सभी भाजपा विधायक,सांसद एवं मंत्रियों ने पीएम की चादर से दूरी बनाए रखी।
गौरतलब है कि शुक्रवार को ही मुख्यमंत्री वसुँधरा राजे की ओर से पेश की गई चादर के मौके पर अजमेर जिले के ना केवल भाजपा विधायकों एवमं मंत्रियों का हुजूम उमड़ पड़ा था।
कौन आए प्रधानमंत्री मोदी की ओर से चादर पेश करने के दौरान
पीएम मोदी की ओर से पेश की गई चादर के अवसर पर केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के साथ राज्य हज कमेटी के अध्यक्ष अमीन पठान, राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अबू बकर नकवी तथा पूर्व अध्यक्ष सलावत खां मौजूद थे।
पीएम मोदी की ओर से पेश की गई चादर के अवसर पर केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के साथ राज्य हज कमेटी के अध्यक्ष अमीन पठान, राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अबू बकर नकवी तथा पूर्व अध्यक्ष सलावत खां मौजूद थे।
कौन आए मुख्यमंत्री की ओर से चादर पेश करने
मुख्यमंत्री निवास से वसुँधरा राजे ने स्वयं मखमली चादर को रवाना किया। चादर लेकर शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी, महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री अनिता भदेल, राज्य हज कमेटी के चेयरमैन अमीन पठान, संसदीय सचिव सुरेश रावत सहित अन्य जनप्रतिनिधी अजमेर शरीफ पहुंचे थे। उनके साथ चादर पेश के दौरान जिला प्रमुख वंदना नोगिया, विधायक भागीरथ चौधरी एवं अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा भी मौजूद थे।
यह पहला मौका है कि प्रधानमंत्री की ओर से पेश की गई उर्स के मौके पर पेश की गई चादर के साथ मुख्यमंत्री मौजूद नही रहे। प्रदेश ही नही दिल्ली के राजनितिक गलियारो में इस बात की चर्चा रही कि आखिर क्या कारण रहे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से चादर पेशगी के मौके पर प्रदेश स्तर का कोई मंत्री,सांसद,विधायक या प्रदेश स्तरीय पदाधिकारी मौजूद नही थें।
कहां थी सरकार
मुख्यमंत्री वसुँधरा राजे और बीजेपी सरकार का सारा ध्यान धौलपुर उपचुनाव पर है। मुख्यमंत्री वसुँधरा राजे धौलपुर में चुनावी व्यवस्थाओ का जायजा लेने शुक्रवार से ही धौलपुर मे प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, समेत एक दर्जन मंत्रियों के साथ चुनाव प्रचार में व्यस्त है।
मुख्यमंत्री वसुँधरा राजे और बीजेपी सरकार का सारा ध्यान धौलपुर उपचुनाव पर है। मुख्यमंत्री वसुँधरा राजे धौलपुर में चुनावी व्यवस्थाओ का जायजा लेने शुक्रवार से ही धौलपुर मे प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, समेत एक दर्जन मंत्रियों के साथ चुनाव प्रचार में व्यस्त है।
प्रधानमंत्री की ओर से उर्स के दौरान चादर पेश करने का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था लेकिन भाजपा के लिए प्रतिष्ठा बना धौलपुर उपचुनाव के सामने प्रधानमंत्री मोदी की चादर महज रस्म बनकर रह गई। क्योंकि मुख्यमंत्री वसुँधरा राजे इस दौरान धौलपुर में थी और यही कारण था कि भाजपाईयो ने पीएम मोदी की चादर के सामने धौलपुर उपचुनाव को तवज्जों देना जरुरी नही समझा। प्रदेश स्तरीय नेताओ की इस बेरुखी को सीधे तौर पर केन्द्रीय नेतृत्व के खिलाफ टकराव की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
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